Friday 25 May 2012

अहंकार का शमन


Friday, 25 May 2012 12:51:07 hrs IST
एक संन्यासी घूमता हुआ राजा के महल से होकर गुजरा। राजा के निवेदन पर संन्यासी ने राजा को दर्शन दिए। राजा ने प्रार्थना की, 'महाराज! मेरी रानियां भी आपके दर्शन करना चाहती हैं, लेकिन रिवाज के मुताबिक वे रनिवास से बाहर नहीं आ सकतीं। आप मेरे महल के भीतर चलें।' संन्यासी ने यह निवेदन भी स्वीकार कर लिया। 

राजा ने परिकरों को संकेत किया और तत्काल महल के द्वार से लेकर अन्त:पुर तक कीमती मखमली कालीन बिछा दिए गए। उन पर इत्र और खुशबूदार गुलाबजल छिड़का गया। मार्ग के दोनों ओर आदमकद दर्पण लगा दिए गए। 

महल के बाहर खड़े संन्यासी ने अपने कमंडल से पैरों पर पानी उंडेला और कीचड़ सने पैरों से उन गलीचों के ऊपर चलकर महल के भीतर जाने लगा।

साथ चल रहे विद्वान दरबारी ने संन्यासी से कहा, 'महात्मन! इतने अच्छे और कीमती कालीन को कीचड़ सने पैरों से गंदा करना कोई अच्छी बात तो नहीं।' 

संन्यासी ने कहा, 'मार्ग में मखमली गलीचे बिछाकर राजा के द्वारा अपने वैभव का प्रदर्शन करना तो अच्छी बात होगी? मैं तो उसके घमंड को चूर कर रहा हूं।'

विद्वान ने कहा, 'लगता है आपकी तपस्या अभी परिपक्व नहीं हुई। क्या आप नहीं जानते कि अहंकार को अहंकार से नहीं तोड़ा जा सकता। खून से खून का प्रक्षालन नहीं किया जा सकता और नमक को नमक से नहीं खाया जा सकता।'

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