Monday, 02 Apr 2012 9:20:36 hrs IST
अनुशासन
को वही मान सकता है, जिसमें सहिष्णुता है। बड़ा आदमी भी वही बन सकता है, जिसमें
सहिष्णुता है। आज अनुशासन में रहना किसी को मान्य नहीं है।
एक बारह-तेरह वर्ष का
लड़का नगर से निकल कर एक निर्जन स्थान पर पहुंच गया। वहां उसे एक झोंपड़ी दिखाई
पड़ी। वह उत्सुकता से वहां पहुंच गया। देखा बाबाजी झोंपड़ी में बैठे कोई धार्मिक
ग्रंथ पढ़ रहे हैं। लड़के को देखकर उन्होंने उसे पास बुलाया। पीने को जल दिया और
सामान्य जानकारी ली। वे समझ गए कि लड़का परिवार से अप्रसन्न होकर आया है, परेशान
है। पूछा 'बच्चा तुम चेला बनोगे।' बाबाजी ने पूछा चेला बनोगे, तो लड़का असमंजस में
पड़ गया, क्योंकि चेला बनने का मतलब वह समझ नहीं पाया था।
संभ्रांत परिवार का
था, 'चेला' शब्द ही नहीं सुना था। उसने पूछा- 'बाबा! यह चेला क्या होता है?' बाबा ने
कहा 'भोले हो, इतना भी नहीं जानते? एक होता है गुरू और एक होता है चेला। गुरू का
काम है आदेश देना। चेले का काम है आज्ञा या हुक्म का पालन करना।' लड़के ने झटपट
उत्तर नहीं दिया। बोला 'मुझे सोचने का अवसर दीजिए।'
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