Thursday 18 October 2012

सत्य न झुठलाएं

जो आदमी सत्य को झुठलाता है, वह घाटे में रहता है। सत्य को झुठलाने का परिणाम अच्छा नहीं होता। जब सत्य का पता चलता है, तब वह झूठ उसे ही सालने लगता है। असत्य की उत्पत्ति के चार कारण बताए गए हैं-क्रोध, लोभ, भय और हास्य। आदमी झूठ नहीं बोलना चाहता। वाणी का असत्य भी नहीं चाहता, किन्तु जब ये चार आवेश प्रबल होते हैं, तब सच्चाई नीचे चली जाती है और असत्य उभरकर सामने आ जाता है। 
एक बार की बात है। विदेश कमाने गए पुत्र ने पिता को एक अंगूठी भेजी। पत्र में उसने लिखा, पिताजी! आपको मैं एक अंगूठी भेज रहा हूं। उसका मूल्य है पांच हजार रूपया। सस्ते में मिल गई थी, इसलिए खरीद ली। अंगूठी पाकर पिता प्रसन्न हो गया। पिता ने अंगूठी पहन ली। अंगूठी बहुत चमकदार और सुन्दर थी। बाजार में मित्र मिले। नई अंगूठी को देखकर पूछा, यह कहां से आई? उसने कहा, लड़के ने भेजी है। पांच हजार रूपए लगे हैं। मित्र बोला, क्या इसे बेचोगे? मैं पचास हजार दूंगा। उसने सोचा, पांच हजार की अंगूठी के पचास हजार मिल रहे हैं। इतने रूपयों में ऎसी दस आ जाएंगी। 

उसने अंगूठी निकालकर दे दी और पचास हजार रूपए ले लिए। पुत्र को पत्र लिखा, तुमने शुभ मुहूर्त में अंगूठी भेजी। उसको मैंने पचास हजार रूपए में बेचकर पैंतालीस हजार रूपए कमा लिए। लौटती डाक से पत्र आया, पिताजी! संकोच और भयवश मैंने सच्चाई नहीं लिखी थी। वह अंगूठी एक लाख की थी। यह सत्य को झुठलाने का परिणाम था।

कर्म, फल और खेल

श्याम नामक बालक रोज स्कूल जाते वक्त जंगल से गुजरते जंगली जानवरों की आवाज से बहुत भयभीत रहता था। उसने अपने पिता से हठ किया कि आप मुझे रोज स्कूल छोड़ने आया करो। पिताजी ने कहा, तुम पूरे रास्ते गोपाल-गोपाल कहते चलते जाओ। श्री कृष्ण तुम्हारी रक्षा स्वयं करेंगे। 
नन्हें से श्याम ने रोज स्कूल जाते वक्त गोपाल का स्मरण करना शुरू किया। कुछ दिनों पश्चात कृष्ण उसके सामने प्रकट हुए और कहा, बोलो, तुम्हें क्या वरदान दूँ? नन्हे से श्याम ने कहा, 'हे गोपाल, आप रोज मुझे स्कूल तक छोड़ने आओ, यही मेरी इच्छा है।' कृष्ण तैयार हो गए। 
मैत्रीपूर्ण स्नेह भरा सफर चलता रहा। श्याम के कुछ मित्रों ने जब यह बात सुनी, तो उन्होंने कहा कि 'हम कैसे माने कि कृष्ण तुम्हें स्कूल छोड़ने आते हैं?' 
दूसरे दिन श्याम ने कृष्ण से प्रार्थना की, तो मित्रों को भी कृष्ण दर्शन हुए। 
जैसे श्याम कि भक्ति का फल उसके मित्रों को बिना मेहनत मिला, इसी प्रकार हमारे जीवन में रोजाना हमें कई ऎसी प्राप्तियां होती हैं, जिसके लिए हमने कोई पुरूषार्थ नहीं किया। माता-पिता, भाई-बहन, मित्र के किसी पुण्य से हमें ये प्राप्तियां होती हैं। 
कभी उन लोगों का उपकार नहीं भूलना चाहिए, जिनके पुरूषार्थ से हम आगे बढे। जन्म से लेकर मृत्यु तक हमने अनेकानेक लोगों से मदद ली। अत: कभी यह मिथ्या अभिमान न करें कि हमने अपने बलबूते सबकुछ हासिल किया है। सृष्टि पर ऎसा कोई नहीं, जिसने किसी के साथ-सहयोग के बिना अपना जीवन निर्वाह किया हो। इसीलिए सदैव सभी के प्रति कृतज्ञता की भावना रखें।