Saturday 3 July 2021

भीतर के संस्कार ही मनुष्य को श्रेष्ठ बनाते हैं - टी एन शेषन

संस्कार

श्री टी.एन. शेषन जब मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तो परिवार के साथ छुट्टीयां बिताने के लिए मसूरी जा रहे थे। परिवार के साथ उत्तर प्रदेश से निकलते हुऐ रास्ते में उन्होंने देखा कि पेड़ों पर गौरैया के कई सुन्दर घोंसले बने हुए हैं।



यह देखते ही उनकी पत्नी ने अपने घर की दीवारों को सजाने  के लिए गौरैया के दो घोंसले लेने की इच्छा व्यक्त की तो उनके साथ चल रहे। पुलिसकर्मियों ने तुरंत एक छोटे से लड़के को बुलायाजो वहां मवेशियों को चरा रहा था.उसे पेड़ों से तोड कर दो गौरैया के घोंसले लाने के लिए कहा। लडके ने इंकार मे सर हिला दिया।

श्री शेषन ने इसके लिए लड़के को 10 रुपये देने की पेशकश की। फिर भी  लड़के के इनकार करने पर  श्री शेषन ने बढ़ा कर  ₹ 50/ देने की पेशकश की। फिर भी लड़के ने हामी नहीं भरी। पुलिस ने तब लड़के को धमकी दी और उसे बताया कि साहब ज़ज हैं और तुझे जेल में भी डलवा सकते हैं। गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

लड़का तब श्रीमती और श्री शेषन के पास गया और कहा,- "साहबमैं ऐसा नहीं कर सकता। उन घोंसलों में गौरैया के छोटे बच्चे  हैं अगर मैं आपको दो घोंसले दूंतो जो गौरैया अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में बाहर गई हुई हैजब वह वापस आएगी और बच्चों को नहीं देखेगी तो बहुत दुःखी होगी जिसका पाप मैं नहीं ले सकता"

यह सुनकर श्री टी.एन. शेषन दंग रह गए।


श्री शेषन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-"मेरी स्थिति, शक्ति और आईएएस की डिग्री सिर्फ उस छोटे, अनपढ़, मवेशी चराने वाले लड़के द्वारा बोले गए शब्दों के सामने पिघल गई। "पत्नी द्वारा घोंसले की इच्छा करने और घर लौटने के बाद, मुझे उस घटना के कारण अपराध बोध की गहरी भावना का सामना करना पड़ा"

जरूरी नहीं कि शिक्षा और महंगे कपड़े मानवता की शिक्षा दे ही दें। यह आवश्यक नहीं हैं, यह तो भीतर के संस्कारों से पनपती है। दया, करूणा, दूसरों की भलाई का भाव, छल कपट न करने का भाव मनुष्य को परिवार के बुजुर्गों द्वारा दिये संस्कारों से तथा अच्छी संगत से आते है अगर संगत बुरी है तो अच्छे गुण आने का प्रश्न ही नही है।


वैराग्‍य-शतक - भर्तृहरि की कथा

भर्तृहरि ने घर छोड़ा। देखा लिया सब। पत्‍नी का प्रेम, उसका छलावा, अपने ही हाथों आपने छोटे भाई विक्रमादित्‍य की हत्‍या का आदेश। मन उस राज-पाट से वैभव से थक गया। उस भोग में केवल पीड़ा और छलावा ही मिला। सब कुछ को खूब देख-परख कर छोड़ा। बहुत कम लोग इतने पक कर छोड़ते हैं, इस संसार को, जितना भर्तृहरि ने छोड़ा है। अनूठा आदमी रहा होगा भर्तृहरि, खूब भोगा। ठीक-ठीक उपनिषद के सूत्र को पूरा किया: ‘’तेन त्‍यक्‍तेन भुंजीथा:‘’ खूब भोगा।



     एक-एक बूँद निचोड़ ली संसार की। लेकिन तब पाया कि कुछ भी नहीं है। अपने ही सपने है, शून्‍य में भटकना है। भोगने के दिनों में श्रृंगार पर अनूठा शास्‍त्र लिखा, "श्रृंगार-शतक", कोई मुकाबला नहीं। बहुत लोगों ने श्रृंगार की बातें लिखी हैं। पर भर्तृहरि जैसा स्‍वाद किसी ने श्रृंगार का कभी नहीं लिखा। भोग के अनुभव से श्रृंगार के शास्‍त्र का जन्‍म हुआ। यह कोई कोरे विचारक की बकवास न थी। एक अनुभोक्‍ता की अनुभव-सिद्ध वाणी थी। श्रृंगार-शतक बहुमूल्‍य है। संसार का सब सार उसमें है।

लेकिन फिर आखिर में पाया वह भी व्‍यर्थ हुआ। छोड़-कर जंगल चले गए। फिर "वैराग्‍य-शतक" लिखा, फिर वैराग्‍य का शास्‍त्र लिखा। उसका भी कोई मुकाबला नहीं है। भोग को जाना तो भोग की पूरी बात की, फिर वैराग्‍य को जाना तो वैराग्‍य की पूरी बात की।

      जंगल में एक दिन बैठे हैं। अचानक आवाज आई। दो घुड़सवार भागते हुए चले आ रहे है। दोनों दिशाओं से। चट्टान पर बैठे है, भर्तृहरि देखते है उस छोटी सी पगडंडी की ओर। घोड़ों की हिनहिनाहट से उसकी आँखें खुल गई। सामने सूरज डूबने की तैयारी कर रहा है। उसकी सुनहरी किरणें पेड़-पत्‍ते, पगडंडी जिस को भी छू रही है, वह स्वर्णिम लग रहा है। पर अचानक तीनों की निगाह उस चमकदार चीज पर एक साथ पड़ी। दोनों घुड़सवारों और भर्तृहरि की। एक बहुमूल्य हीरा, धूल में पड़ा हुआ भी चमक रहा है। हीरे की चमक अदभुत थी! हजारों हीरे देखे थे भर्तृहरि ने, पर यह अनोखा ही था। वासना एक क्षण में उस हीरे पर गई। और जैसे ही भर्तृहरि ने अपनी वासना को देखा, वह तत्क्षण लौट आई। एक क्षण में मन भूल गया सारे अनुभव विषाद के। वह सारा अनुभव भोग का। वह तिक्‍तता, वह वासना उठ गई।



      एक क्षण को ऐसा लगा कि अब उठे-उठे, और उसी क्षण ख्‍याल आ गया अरे पागल! क्‍या कर रहा है!! ये सब छोड़ कर तू आया है!!! देखा है जीवन में इसके महत्‍व को, भोगी है पीड़ा उस में रह कर। फिर उसी में जाना चाहता है। पर ये बातें उसके मन को मथती, कि सामने से आते दो घुड़सवार आ कर उस हीरे के दोनों ओर खड़े हो गये। दोनों ने एक दूसरे को देखा और तलवारें निकाल ली। दोनों ने कहा मेरी नजर पहले पड़ी थी इस लिए यह हीरा मेरा है। दूसरा भी यही कह रहा था। अब बातों से निर्णय होना असम्‍भव था। तलवारें खिंच गयीं। क्षण भर में दो लाशें पड़ी थी, तड़पती, लहू-लुहान। और हीरा अपनी जगह पड़ा था।

      उधर भर्तृहरि अपनी जगह केवल देखते रह गये। एक निर्जीव और एक जीवित। सूरज की किरणें अब भी चमक रही थी, पर कुछ कोमल हो गई थी। हीरा बेचारा यह जान भी नहीं पाया कि क्षण भर में उसके आस-पास क्‍या घट गया! सब कुछ हो गया वहाँ। एक आदमी का संसार उठा और वैराग्‍य हो गया। दो आदमी का संसार उठा और मौत हो गई। दो आदमी अभी-अभी जीवित थे, उनकी धमनियों में खून प्रवाहित हो रहा था। श्वांस चल रही थी, दिल धड़क रहा था, मन सपने बुन रहा था। पर क्षण में प्राण गँवा दिये एक पत्‍थर के पीछे। और बेचारा निर्दोष पत्‍थर जानता भी नहीं कि ये सब उसके कारण हो रहा है। एक आदमी वहाँ बैठा-बैठा जीवन के सारे अनुभव से गुजर गया। भोग के और वैराग्‍य के; और पार हो गया! साक्षी भाव जाग गया उस का!भर्तृहरि ने आँखें बन्द कर ली। और वे फिर ध्‍यान में डूब गए। जीवन का सबसे गहरा सत्‍य क्‍या है? तुम्‍हारा चैतन्‍य। सारा खेल वहाँ है। सारे खेल की जड़ें वहाँ है। सारे! संसार के सूत्र वहाँ है ... एस धम्‍मो सनंतनो....!!!

Thursday 15 June 2017

कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है

एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । 
चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई 
और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और 
नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , 
जहाँ भी इस में कमी नजर आये 
वह वहाँ निशान लगा दे ।
 जब उसने शाम को तस्वीर देखी 
उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । 
यह देख वह बहुत दुखी हुआ । 


उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे 
वह दुःखी बैठा हुआ था ।
तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा 
उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । 
उसने कहा एक काम करो 
कल दूसरी तस्वीर बनाना और 
उस मे लिखना कि 
जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये 
उसे सही कर दे । 
उसने अगले दिन यही किया । 
शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी 
तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया ।
वह संसार की रीति समझ गया । 
"कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान है 
लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है।

Saturday 9 July 2016

जैसी करनी वैसी भरनी - कर्म भोग ..!!!


एक गाँव मे एक किसान रहता था। उसके परिवार मे उसकी पत्नी और एक लड़का था। कुछ सालो के बाद पत्नी मृत्यु हो गई। उस समय लड़के की उम्र दस साल थी। किसान ने दूसरी शादी कर ली। उस दूसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ। किसान की दुसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।
किसान का बड़ा बेटा, जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था, जब शादी के योग्य हुआ, तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी। फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।
किसान का छोटा बेटा, जो दुसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनो साथ साथ रहते थे। कुछ टाईम बाद किसान के छोटे लड़के की तबयीत खराब रहने लगी। बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्य से ईलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। छोटे भाई की दिनभर तबीयत बिगड़ी जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था।
एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की यदि ये छोटा भाई मर जाऐ तो हमे इसके ईलाज के लिऐ पैसा खर्च ना करना पड़ेगा।
तब उसकी पत्नी ने कहाँ की क्यो न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाऐ। किसी को पता भी ना चलेगा। कोई रिश्तेदारी मे भी शक ना करेगा कि बीमार था बीमारी से मृत्यु हो गई।
बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात करी कि आप अपनी फीस बातओ, ऐसा करना मेरे छोटे भाई को जहर देना है।
वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई। उसके भाई भाभी ने खुशी मनाई कि रास्ते का काँटा निकल गया। अब सारी सम्पति अपनी हो गई। उसका अंतिम संस्कार कर दिया। कुछ महीनो पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ। उन पति पत्नी ने खुब खुशी मनाई। बड़े ही लाड प्यार से लड़के की परवरिश की। समय के साथ लड़का जवान हो गया। उन्होने अपने लड़के की शादी कर दी।
शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। माँ बाप ने उसके ईलाज के लिऐ बहुत वैद्यों से ईलाज करवाया। जिसने जितना पैसा माँगा दिया।सब दिया की लड़का ठीक हो जाऐ। अपने लड़के के ईलाज मे अपनी आधी सम्पति तक बेच दी पर लड़का बिमारी के कारण मरने की कागार पर आ गया। शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया की अस्थि पिजंर शेष रह गया था।
एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ मे बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी और देख रहा था।
तभी लड़का अपने पिता से बोला की भाई अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो। ये सुनकर उसके पिता ने सोचा की लड़के का दिमाग भी काम ना कर रहा है बीमारी के कारण और बोला बेटा मै तेरा बाप हूँ, भाई नही। तब लड़का बोला मै आपका वही भाई हुँ जो आप ने जहर खिलाकर मरवाया था। जिस सम्पति के लिऐ आप ने मुझे मरवाया, अब वो मेरे ईलाज के लिऐ आधी बिक चुकी है। आधी आपकी की शेष है। हमारा हिसाब हो गया। तब उसका पिता फुट फुट कर रोते हुए बोला की मेरा तो कुल नाश हो गया। जो किया मेरे आगे आ गया पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जाऐगा(उस समय सतीप्रथा थी जिसमे पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था)। तब वो लड़का बोला की वो वैद्य कहाँ है जिसने मुझे जहर खिलाया था। तब उसके पिता ने कहा की आप की मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था।
तब लड़के ने कहा की ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रुप मे है। मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जाऐगा।
परमेश्वर कहते है कि कर्मों का लेखा यहीं भुगत के जाना होता है। इस लिए कोई भी बुरा काम करते हुए एक बार सोच विचार कर लिया करो।

Monday 22 June 2015

अतीत कभी नहीं भूला - बिल गेटस

एक छोटी सी प्रेरक कथा

___अतीत कभी नहीं भूला___

बिल गेटस सुबह के नाश्ते के लिए एक रेस्टोरेंट में पहुंचे।
जब उन्होंने नाश्ता समाप्त कर लिया और वेटर बिल ले आया, तब उन्होंने भुगतान के अलावा पांच डालर बतौर टिप टृे में रख दिए।

वेटर ने टिप तो ले लिया पर उसके मुंह पर आया हुआ आश्चर्य का भाव गेटस की दृष्टि से ओझल न रह सका।
उसी को भांपते हुए उनहोंने पूछा–क्या कोई खास बात है?
वेटर ने कहा– जी, अभी दो दिन पहले की बात है इसी मेज पर आपकी बेटी ने लंच किया और मुझे बतौर टिप पांच सौ डालर दिये थे और आप उनके पिता दुनिया के सबसे अमीर आदमी होने के बावजूद मुझे केवल पांच डालर दिये हैं।
मुस्कुराते हुए गेटस बोले– हां, क्योंकि वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति की बेटी है और मैं एक लकडहारे का बेटा हुं।

...............
मुझे अपना अतीत सदा याद रहता है,
क्योंकि वह मेरा सर्वोत्तम मार्गदर्शक है।
(एक मैगजीन से)






Friday 18 April 2014

अदभुत कथा- ईमानदारी

अदभुत कथा-

लिखने वाले व्यक्ति को तहे दिल से नमन.......कहानी कुछ यूँ है--------

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इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....क्लास मैं हमेशा से अव्वल आता रहा है !

पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया की पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी इस साल काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने मुझे अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है !

खैर मैंने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचा.....दुकानदार ने बेटे के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली ...डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ?

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ......पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?

बेटे ने कहा: पिता जी मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर, कुत्ता, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ कि मुझे कभी जीवन में नए कपडे, नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था! आज मुझे पहली बार मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे.

Tuesday 8 April 2014

महानता के लक्षण - ईश्वरचंद्र विद्यासागर

महानता के लक्षण-

एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। घर में उसकी माता थी। माँ अपने बेटे पर प्राण न्योछावर किए रहती थी,उसकी हर माँग पूरी करने में आनंद का अनुभव करती। पुत्र भी पढ़ने-लिखने में बड़ा तेज़ और परिश्रमी था। खेल के समय खेलता, लेकिन पढ़ने के समय का ध्यान रखता।
एक दिन दरवाज़े पर किसी ने - 'माई! ओ माई!' पुकारते हुए आवाज़ लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया काँपते हाथ फैलाए खड़ी थी।
उसने कहा, 'बेटा! कुछ भीख दे दे।'
बुढ़िया के मुँह से बेटा सुनकर वह भावुक हो गया और माँ से आकर कहने लगा, 'माँ! एक बेचारी गरीब माँ मुझे बेटा कहकर कुछ माँग रही है।'
उस समय घर में कुछ खाने की चीज़ थी नहीं, इसलिए माँ ने कहा, 'बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहे तो चावल दे दो।'
पर बालक ने हठ करते हुए कहा -'माँ! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊँगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूँगा।'
माँ ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा, 'लो, दे दो।'
बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। भिखारिन को तो मानो एक ख़ज़ाना ही मिल गया। कंगन बेचकर उसने परिवार के बच्चों के लिए अनाज, कपड़े आदि जुटा लिए। उसका पति अंधा था। उधर वह बालक पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान हुआ, काफ़ी नाम कमाया।
एक दिन वह माँ से बोला, 'माँ! तुम अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूँ।' उसे बचपन का अपना वचन याद था।
पर माता ने कहा, 'उसकी चिंता छोड़। मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूँ कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हाँ, कलकत्ते के तमाम ग़रीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे जहाँ निशुल्क पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था हो।' माँ के उस पुत्र का नाम था ईश्वरचंद्र विद्यासागर