Saturday 1 September 2012

कर्म से पहले अंजाम सोचें


एक बार राजा नगरचर्या में निकले। रास्ते में देखा कि एक फकीर चिल्ला रहा था, 'एक नसीहत एक लाख'। राजा को जिज्ञासा हुई। राजा ने फकीर से पूछा, तो जवाब मिला कि यदि आप धनराशि दे, तो ही आपको नसीहत प्राप्त होगी। राजा ने अपने वजीर से कहकर धनराशि फकीर को दी और नसीहत के रूप में, कागज का एक टुकड़ा प्राप्त किया। कागज पर लिखा था, 'कर्म करने से पहले उसके अंजाम को सोच।' 

राजा ने फकीर से पूछा, 'इसके लिए इतनी धनराशि आपने ली?' फकीर ने मुस्कुराते हुए कहा, 'यही नसीहत एक दिन आपके प्राण बचाएगी।' राजा ने महल में जगह-जगह इस नसीहत को फ्रेम करवाकर लगवा दिया। 

कुछ दिनों के पश्चात राजा बीमार पड़ा, तो वजीर के मन में बड़ा लालच पैदा हुआ और वह राजा का खून करने के लिए उनके खंड में पहुंच गया। ज्यों ही वह राजा पर हमला करने के लिए आगे बढ़ा, उसकी नजर फकीर के दिए हुए संदेश पर पड़ी, जिसमें लिखा था, 'कर्म करने से पहले अंजाम को सोच'... वजीर ने परिणाम के बारे में सोचा और थम गया। उसने तुरंत राजा के पैरों में गिरकर माफी मांगी।

इस कहानी से हमें सबसे बड़ी सीख यह लेनी है कि हम जीवन में बिना अंजाम सोचे अनेक कर्म करते हैं। जिसके फलस्वरूप आज मनुष्य आत्माओं के जीवन में दु:ख, अशांति और दरिद्रता आ गई है। यदि हम अंजाम को सोचें, तो निंदनीय घटनाओं का क्रम घटता जाएगा और धीरे-धीरे सुखमय संसार की स्थापना हो जाएगी और प्रत्येक व्यक्ति अच्छे व श्रेष्ठ कर्म करेगा।

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