Friday 14 September 2012

सीमा में रहना अच्छा


 सड़क किनारे एक बुढिया अपना ढाबा चलाती थी। एक मुसाफिर आया। दिन भर का थका, उसने विश्राम करने की सोची। बुढिया से कहा, 'क्या रात्रि भर यहां आश्रय मिल सकेगा?' बुढिया ने कहा, क्यों नहीं, आराम से यहां रात भर सो सकते हो।'

यात्री ने पास में पड़ी चारपाइयों की ओर संकेत कर कहा, 'इस पर सोने का क्या चार्ज लगेगा?' बुढिया ने कहा, 'चारपाई के सिर्फ आठ आना।' यात्री ने सोचा रात भर की ही तो बात है। बेकार में अठन्नी क्यों खर्च की जाए। आंगन में काफी जगह है, वहीं सो जाऊंगा।

यह सोचकर उसने फिर कहा, 'और अगर चारपाई पर न सोकर आंगन की भूमि पर ही रात काट लूं तो क्या लगेगा?' 'फिर पूरा एक रूपया लगेगा।' बुढिया ने कहा।

बुढिया की बात सुन यात्री को उसके दिमाग पर संदेह हुआ। चारपाई पर सोने का आठ आना और भूमि पर चादर बिछाकर सोने का एक रूपया। यह तो बड़ी विचित्र बात है। उसने बुढिया से पूछा, 'ऎसा क्यों?'

बुढिया ने कहा, 'चारपाई की सीमा है। तीन फुट चौड़ी, छह फुट लंबी जगह ही घेरोगे। बिना चारपाई सोओगे तो पता नहीं कितनी जगह घेर लो।' सीमा में रहना ही ठीक है। असीम की बात समस्या पैदा करती है।

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