Wednesday 12 September 2012

अज्ञान को जानें


आदमी पढ़ता है, जानता है और कुछ लोग मान भी लेते हैं कि हम बहुत जानते हैं। किंतु कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में नहीं मिलेगा, जो यह कह सके कि मैं सब कुछ जानता हूं। जो जानता है, वह कितना जानता है? अगर हम ज्ञात और अज्ञात की तुलना करें तो अज्ञात एक महासमुद्र है और उसमें जो ज्ञात है, वह एक छोटे से टापू से ज्यादा कुछ नहीं, मात्र एक छोटा-सा द्वीप है। अज्ञात बहुत ज्यादा है।

एक अनुश्रुति है, वह बहुत मार्मिक है। कहा जाता है कि यूनान की राजधानी एथेंस में एक दिन देववाणी हुई कि सुकरात सबसे बड़ा ज्ञानी है। लोग जो सुकरात के प्रशंसक थे, वे दौड़कर सुकरात के पास पहंुचे और उन्हें बताया कि आकाशवाणी हुई है कि आप सबसे बड़े ज्ञानी हैं। सुकरात ने कहा, 'यह बिल्कुल गलत बात है। तुम लोगों ने ठीक से नहीं सुना होगा। मैं सबसे बड़ा ज्ञानी नहीं हूं। मैं तो अपने को अज्ञानी मानता हूं।'

 लोग लौटकर गए और देवी से पूछा, 'आपने कहा कि सुकरात सबसे बड़ा ज्ञानी है।' जब यह बात हम लोगों ने उससे कही तो वह कहता है, झूठी बात है। मैं सबसे बड़ा ज्ञानी नहीं हूं, अज्ञानी हूं। आप बताएं सच्चाई क्या है? देवी ने कहा, 'जो अपने अज्ञान को जानता है, वस्तुत: वही सबसे बड़ा ज्ञानी है।' अपने अज्ञान को जानने वाला ही ज्ञानी होता है। जो ज्ञान का अहंकार करता है, वह कभी ज्ञानी नहीं होता। हर  व्यक्ति अनुभव करे, अपने अज्ञान को देखे कि अभी मैं कितना कम जानता हूं। जानना बहुत कुछ है। कुछ लोग पढ़-लिखकर अहंकारी हो जाते हैं, यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।

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