Monday 17 September 2012

काम की उपयोगिता


माना जाता है कि जो चीज अनुपयोगी हो, उसे छोड़ देना चाहिए। जो ऎसा नहीं करता, उसे कम से कम समझदार तो नहीं कहा जा सकता। एक आदमी यात्रा पर जा रहा था। रास्ते में उसने एक तालाब देखा जिसका पानी लगभग सूख चुका था। पानी के नाम पर सिर्फ गंदा कीचड़ था। तभी उसने देखा एक आदमी अपने मटके में वह कीचड़युक्त पानी भर रहा है। यात्री ने कहा, 'भाई! इस गंदे पानी का क्या करोगे? यह तो किसी कम का नहीं है।' उसने कहा, 'पीने के लिए ले जा रहा हूं।'

'इस गंदे पानी को पियोगे? गंदा पानी पीने से बीमार हो जाओगे। संक्रमण हो जाएगा और जल्दी ठीक भी नहीं हो पाओगे। इसी रास्ते से कुछ दूर आगे जाओ, एक स्वच्छ पानी का जलाशय मिलेगा, मैं अभी उसका पानी पीकर आ रहा हूं। पानी मीठा भी है।'

उस व्यक्ति ने कहा, 'बताने और सलाह देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं दूर का नहीं, यहीं पास के गांव का रहने वाला हूं और जानता हूं कि कहां क्या है? मैं पानी पिऊंगा तो इसी तालाब का पिऊंगा, क्योंकि यह मेरे पूर्वजों द्वारा निर्मित तालाब है। मेरे पितामह, और पिताजी ने जीवन भर इसी तालाब का पानी पिया था। मैं इस तालाब के अलावा और कहीं का पानी पी ही नहीं सकता।'

वास्तव में देखा जाए तो यह कोई तर्क  नहीं है कि सदियों से ऎसा चला आ रहा है, इसलिए आगे भी ऎसा ही चलता रहेगा। हम जो काम कर रहे हैं, उसकी उपयोगिता और परिणाम पर भी दृष्टिपात करना चाहिए।

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