Thursday, 12 Jul 2012 2:27:57 hrs IST
एक जनजाति का आदमी शहर में आया। बहुत दिनों से उसने शहर के बारे में सुन रखा था, किंतु शहर देखा नहीं था। एक दुकान में वह गया, जहां बड़ी-बड़ी पेटियां रखी थीं। उसने उन पेटियों के बारे में पूछा। उसे बताया गया कि दिनभर कपड़े पहनो और रात को उन्हें उतार कर इन पेटियों में सुरक्षित रख दो। अपनी जिज्ञासा शांत कर वह जाने लगा तो दुकानदार ने कहा, 'इतनी देर से तुम इन पेटियों को देख रहे हो। इनके बारे में हर तरह की जानकारी भी तुमने ले ली, अब ऎसी क्या बात हो गई कि तुमने इन्हें लेने का विचार त्याग दिया?'
देहाती ने कहा, 'इनके बारे में जानने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं
कि ये मेरे काम की नहीं है। मैं इनका क्या करूंगा? आपने कहा कि कपड़े रखने
की चीज है। मेरे पास मात्र दो ही कपड़े हैं। इन्हें खोलकर पेटी में रख दूं
तो पहनूंगा क्या?'
बड़े मर्म की बात है। कोरी पेटी को ही मत देखो, अपनी हैसियत को भी देखो।
कपड़े पर भी विचार करो। पास में कपड़ा है तो पेटी का उपयोग है। पास में
कपड़ा नहीं तो खाली पेटी का कोई उपयोग नहीं है।
कहने का अर्थ यह कि वे आदमी दुखी बनते हैं, जो केवल वर्तमान को देखते
हैं, भविष्य को नहीं देखते, परिणाम को नहीं देखते। वर्तमान को देखते हैं,
किंतु परिणाम को नहीं देखते कि इसका परिणाम क्या होगा? ऎसे आदमी दुखी बनते
हैं। पेटी तो बहुत बड़ी खरीद ली, किंतु पास में कपड़ा है या नहीं, इस पर भी
तो विचार कर लेना चाहिए। मकान बहुत बड़ा बना लिया, किंतु रहने वाला कोई है
या नहीं?
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