Monday, 09 Jul 2012 2:27:36 hrs IST
एक है परप्रतिष्ठित अहंकार। अर्थात दूसरा कोई व्यक्ति अगर ऎसी बात कह देता है, जिससे अहंकार जाग्रत हो जाता है तो उसे परप्रतिष्ठित अहंकार कहा जाता है। बाजार से लौटकर आई पत्नी पति को अपने द्वारा खरीदी गई साडियां दिखा रही थी। दो हजार और ढाई हजार रूपए की कीमती साडियां देखकर पति को किंचित गुस्सा आया। गुस्से में उसने केवल इतना ही कहा, इतनी महंगी साडियां खरीदने की क्या जरूरत थी। यह महंगाई के जमाने में पैसे का अपव्यय है, बर्बादी है।
पत्नी बोली- 'मैं आपकी बात से सहमत हूं कि इतनी कीमती साडियां मुझे नहीं
खरीदनी चाहिए। लेकिन पड़ोस में गुप्ताजी की पत्नी दो हजार रूपए की साडियां
खरीदकर लाई और मोहल्ले भर में दिखाती रही। तब मेरे सामने आपकी प्रतिष्ठा
का सवाल आ गया।' पत्नी की बात सुनकर पति का गुस्सा एकदम काफूर हो गया। उसके
मन में तत्काल दूसरी भावनाएं उत्पन्न हो गईं। मेरी पत्नी मेरी प्रतिष्ठा
का कितना ध्यान रखती है। पति के मन में अहंकार जाग गया। कहने का अर्थ यह कि
अहंकार गुस्से का शमन भी करता है। एक नियम है कि मनुष्य की दोनों
प्रकृतियां साथ-साथ काम नहीं करतीं।
जब क्रोध आता है तो उस समय अहंकार दबा रहेगा। जब अहंकार जाग्रत हो गया
तो फिर क्रोध दब जाएगा। दोनों स्थितियां साथ-साथ नहीं चलतीं। अहंकार को
जाग्रत कर काम कराना भी एक कला है। अहंकार की स्थिति में मनुष्य सब कर देता
है। परप्रतिष्ठित अहंकार भी यह है। यह अपने आप नहीं आया, दूसरे से प्रशंसा
सुनकर आ गया।
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