Friday 6 July 2012

कोरी पूजा का अर्थ नहीं

Thursday, 05 Jul 2012 3:34:18 hrs IST

एक विद्यार्थी अपने काम में बहुत सफल हो रहा था। दूसरे विद्यार्थियों ने उससे पूछा कि तुम्हारी सफलता का राज क्या है? उसने कहा, 'प्रात:काल मैं सरस्वती की पूजा करता हूं। उनका स्तोत्र बोलता हूं, इस कारण मैं सफल हो रहा हूं।' एक विद्यार्थी ने इस बात को सफलता का गुर मानकर उसका अनुकरण करने का निश्चय किया। सरस्वती की प्रतिमा ले आया। विघिपूर्वक उसके सामने स्तोत्र बोलना शुरू कर दिया। जब परीक्षा का परिणाम आया तो देखा वह अनुत्तीर्ण था। वह छात्र उसके पास गया, जिसने सरस्वती की पूजा को अपनी सफलता का कारण बताया था। बोला, 'मैंने तुम्हारा अनुकरण किया, फिर भी मुझे सफलता नहीं मिली, ऎसा क्यों?' उसने कहा, 'ऎसा तो नहीं होना चाहिए। अच्छा बताओ, पूजा के साथ तुमने पढ़ाई तो मन लगाकर की या नहीं?' 'वह तो नहीं की। जब मन लगाकर पढ़ना ही है, तो फिर पूजा-पाठ क्यों करता?'
'यही तुम्हारी सबसे बड़ी भूल रही। अच्छा जो हुआ, सो हुआ, अब मैं तुम्हें एक श्लोक सुनाता हूं, सुनो—
उद्यम: साहसं धैर्य, बुद्धि: शक्ति: पराक्रम:।
षडेते यत्र विद्यन्ते, तत्र देव: सहायकम्।।
देवता सहायता कहां करता है? जहां उद्यम है, साहस है, धैर्य है, बुद्धि है, शक्ति है और पराक्रम यानी पुरूषार्थ है। ये छह बातें हैं, वहां देवता भी सहायक बनते हैं। जहां यह सब नहीं, कोरी पूजा है, वहां कोई देवता पास भी नहीं फटकता। मेरी सहायता देवता करते हैं, क्योंकि मैं इन छह में विश्वास करता हूं। हमें ऎसा काम करना चाहिए, जो वास्तव में ज्ञान और आचार की दूरी को मिटा सके।

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