Wednesday, 08 Aug 2012 4:21:00 hrs IST
प्राचीन समय में वैद्य रोगी की नाड़ी देखकर सारा निदान कर देते थे। वैद्यजी ने एक रोगी की नाड़ी देखी और कहा, 'सर्दी का मौसम है। तुम गोंद या मेथी के लड्डू बनवा लो और उसका सेवन करो।' इसके बाद वैद्यजी ने दूसरे रोगी को देखना शुरू किया। जांच करने के बाद उन्होंने कहा, 'तुम गरिष्ठ भोजन को बिल्कुल छोड़ दो। सिर्फ, रूखी चपाती और रूखा खांखरा खाओ।' जैसे ही वैद्यजी ने रोगी को यह पथ्य बताया, उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव आ गए। वह बोला, 'वैद्यजी! चिकित्सक के लिए सब बराबर होते हैं। किंतु आप तो भेदभाव कर रहे हैं।
किसी को घी और मेवा-मिष्ठान खाने की सलाह देते हैं और किसी को रूखी
रोटी, यह न्यायपूर्ण बात नहीं है।' कोई पैसे वाला रोगी रहा होगा। उसने जब
ऎसी बात कही तो वैद्य ने कहा, 'हमारे यहां फीस सबकी बराबर है, फिर भेदभाव
की बात कहां से आ गई? जहां तक पथ्य की बात है, वह शरीर की स्थिति के अनुसार
बताया जाता है।
अभी तुमसे पहले जो रोगी मैंने देखा, उसके शरीर को पोषक
तत्वों की जरूरत है।
उनके अभाव में उसका शरीरबल क्षीण हो रहा है और उसके कारण अन्य रोगों के
भी सक्रिय होने की संभावना है। इसलिए मैंने उसे पौष्टिक भोजन करने का
परामर्श दिया है और जहां तक तुम्हारी बात है, तुम्हारा पाचनतंत्र बहुत
कमजोर हो रहा है। गरिष्ठ भोजन कर तुमने अपने पाचनतंत्र का काफी नुकसान कर
लिया, इसलिए तुम्हें तेल-घी युक्त चीजों के सेवन से बचना है।' कहने का
तात्पर्य यह कि सबकी अलग-अलग स्थितियां हैं।
No comments:
Post a Comment