Thursday 7 March 2013

दीर्घकालीन साधना करें

प्राचीन कहानी है। कहा जाता है—किसी कारणवश इन्द्र क्रुद्ध हो गया। उसने घोषणा कर दी—अब बारह वर्ष तक मेह नहीं बरसेगा। एक वर्ष भी बरसात न हो तो हाहाकार मच जाता है। बारह वर्ष की घोषणा सुन जनता मायूस हो गई। बरसात का समय। किसान हल और बैलों को लेकर खेतों में गए। भूमि को साफ किया। हल जोते।
इन्द्र ने देखा, उसने सोचा—मेरी स्पष्ट घोषणा है कि बारिस नहीं होगी, फिर ये क्यों खेती कर रहे हैं? वेश बदलकर इन्द्र नीचे आया। किसान इकट्ठे हो गए। इन्द्र बोला—क्या तुमने इन्द्र की यह घोषणा नहीं सुनी कि बारह वर्ष तक मेह नहीं बरसेगा। लोगों ने कहा—हमने सुना है। इन्द्र ने पूछा—फिर यह व्यर्थ का प्रयत्न क्यों कर रहे हो? क्यों भूमि को साफ कर रहे हो? क्यों बैलों को तकलीफ दे रहे हो? क्यों बुआई की तैयारी कर रहे हो? मेह तो बरसेगा नहीं। किसान बोले—मेह बरसे या न बरसे, हम तो भूमि की सफाई भी करेंगे और हल भी चलाएंगे।
यदि हम यह प्रयत्न करना छोड़ देंगे तो हमारी भावी पीढ़ी बिल्कुल बेकार हो जाएगी, कृषि करना भूल जाएगी। बारह वर्ष के बाद वे क्या खाएंगे? हम यह कार्य प्रतिवर्ष करते रहेंगे। मेघ बरसे या नहीं बरसे, यह उसकी इच्छा है, किन्तु हम अपना धन्धा नहीं छोड़ेंगे, कृषि करते चले जाएंगे। ऎसा करते-करते एक दिन अवश्य आएगा—मेह भी बरसेगा, खेती भी होगी। आखिर इन्द्र हारेगा, हम नहीं हारेंगे। कहने का अर्थ यह कि दृढ़ संकल्प होता है परिवर्तन का, प्रशिक्षण का तो इन्द्र हार सकता है, किसान कभी हार नहीं सकता।

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