Thursday 7 March 2013

दृष्टिकोण बदलें

पिता- पुत्र भोजन कर रहे थे। इतने में जोरदार आवाज हुई। पिता ने कहा, कोई बर्तन फूटा है। पुत्र बोल उठा, 'हां, कोई कांच का बर्तन फूटा है और मेरी मां के हाथ से फूटा है।' यह सुनते ही पिता को आवेश आ गया, 'तेरी क्या आदत पड़ गई है। हमेशा मां की बुराई देखता है।'
'पिताजी! मैं ठीक कह रहा हूं।'

'तुझे कैसे पता चला? हम तो यहां बैठे हैं।'
'मुझे पक्का पता है।' पिता और गुस्से में आ गया, 'कैसा नालायक है, अपनी मां की बुराई करता है, कभी पत्नी की नहीं करता।' 'मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं। जब मां के हाथ से बर्तन गिरता है, तब केवल टंकार होता है। जब पत्नी के हाथ से कुछ गिरता है तब टंकार और झंकार—दोनों होते हैं।' 'जाओ, पहले पता करके आओ।'
लड़का भीतर गया और सारी स्थिति को जानकर बाहर आया। बोला, 'पिताजी! मां कांच का बर्तन ला रही थी। वह मां के हाथ से गिरा और गिरते ही फूट गया। मां स्वयं यह बता रहीं थीं।' 'भई! तुम्हें पता कैसे चला?' —पिता का आवेश विस्मय में बदल गया। 'अरे! इसमें पता चलने की क्या बात? मां के हाथ से फूटा और एक मिनट में आवाज बंद हो गई। अगर मेरी पत्नी के हाथ से फूटता तो घण्टा भर तक वह आवाज बंद ही नहीं होती। उस टंकार के साथ झंकार भी होता रहता।' कहने का अर्थ है कि बर्तन फूटने की टंकार तो एक मिनट में ही बंद हो जाती है, पर जो गालियां देने की झंकार है, वह घंटों तक चलती रहती है। झगड़े को टालने का उपाय है, आत्मा का ध्यान। जिसने चेतना का ध्यान किया, उसका जीवन सुधर गया।

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