Saturday 23 February 2013

लचीलापन बढ़े

एक है बाल की मनोवृत्ति और दूसरी है प्रौढ़ की मनोवृत्ति। दो बच्चे लड़ पड़े। बच्चों ने एक दूसरे को पीटा। एक बच्चा मां-बाप के पास गया, बोला, उसने मुझे पीट दिया। दूसरे बच्चे ने भी अपने माता-पिता से वही शिकायत कर दी। मां-बाप भी गुस्से में आ गए। वे भी आपस में लड़ पड़े।

बच्चों के आधार पर लड़ना मूर्खता ही है, किन्तु आवेश में लोग यह मूर्खता भी करते हैं। दूसरा दिन हुआ। बच्चों की लड़ाई कितनी देर की होती है। बालक की मनोवृत्ति है भुला देना। एक मिनट में बच्चा रोता है, दूसरी मिनट में हंसने लग जाता है। एक मिनट में पीटने का प्रयत्न करता है और दूसरी मिनट में भूल जाता है।

दूसरे दिन दोनों बच्चे फिर आए और आपस में खेलने लगे, पर दोनों बच्चों के मां-बाप मिलने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उनमें एक गांठ बन गई। उनका वह वैर-भाव वष्ाोü तक चलता रहा। बच्चों ने दूसरे दिन ही अपना वैर समाप्त कर दिया, किन्तु उनके माता-पिता उसे नहीं भुला सके। एक बालक एक दिन ही नहीं, एक घण्टे बाद ही घटना को भुला देता है। यह है बालक की मनोवृत्ति। जब तक लचीलापन होता है, तब तक बालक की मनोवृत्ति रहती है। जैसे-जैसे कड़ापन आता जाता है, वैसे-वैसे प्रौढ़ की मनोवृत्ति बनती चली जाती है।

आसन का उद्देश्य है—रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाए रखना। सभी हडि्डयां लचीली रहे, पर मुख्यत: रीढ़ की हड्डी का भाग लचीला रहे। इसका लचीला होना शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, मानसिक और भावात्मक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है-लचीलापन बढ़े, कड़ापन न आए।

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