Sunday 17 June 2012

सुधारने की कला


पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन एक प्रख्यात शिक्षाशास्त्री ही नहीं, एक बेहतरीन इंसान भी थे। उनके जीवन का एक प्रसंग है—परिवार में एक पुराना नौकर था। बहुत ईमानदार और विश्वस्त, लेकिन एक बड़ा अवगुण उसमें यह था कि वह आलसी  था। सवेरे जल्दी उठ नहीं पाता था। नौकर अगर आलसी हो तो मालिक की कठिनाइयां बढ़ ही जाती हैं। वे चाहते तो एक मिनट में उसकी छुट्टी कर सकते थे। बड़े आदमियों को नौकर-चाकरों की क्या कमी? 

बड़े लोग अपने अधीनस्थ की गलती पर उन्हें बर्खास्त कर देते हैं। लेकिन डॉक्टर जाकिर हुसैन ने ऎसा नहीं किया। बिगड़े को बनाने की कला वे जानते थे। आखिर शिक्षाशास्त्री थे। एक दिन सवेरे वे चाय का कप-प्लेट लिए सोए हुए नौकर के पास गए और धीरे से बोले— 'मालिक उठो।'

एक मंद और मीठी आवाज नौकर के कान में पड़ी तो वह चौंक पड़ा कि मालिक कहकर यह कौन मुझे संबोधित कर रहा है? तानी हुई चादर से मुंह निकालकर देखा तो देखा कि सामने डॉक्टर साहब चाय की प्याली लिए खड़े हैं। एक झटके के साथ वह उठकर बैठ गया। उस समय शर्म और संकोच से जैसे वह गड़ गया। 

सिर झुकाए हुए नौकर बोला— 'मुझे क्षमा करें। आज के बाद मैं कभी आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा।' और सचमुच जब तक वह डॉक्टर साहब के यहां रहा, अप्रमादी बनकर रहा। उसने फिर कभी शिकायत का मौका नहीं दिया।

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