Monday 8 April 2013

परम्पराएं स्वस्थ हों

किसी परिवार में एक व्यक्ति के चार बेटे और चार बहुएं थीं। पिता वृद्ध और लाचार हो गया तो उसकी उपेक्षा होने लगी। बेटों और बहुओं को उसकी सेवा भारी लगने लगी। चारों भाइयों ने मिलकर विचार किया और वृद्ध पिता को पशुओं के बाड़े में डाल दिया। उसे एक टोकरा दे दिया यह कह कर कि भूख लगे तो उसे बजा दिया करो, भोजन भिजवा दिया जाएगा।


पशुओं के बाड़े में पड़ा, वृद्ध पिता अपनी असमर्थता पर आंसू बहाता। भूख से विकल होकर वह कांपते हाथों से टोकरा बजाता तो घर का कोई सदस्य अनिच्छापूर्वक बाड़े में जाता और एक पात्र में रूखी रोटियां डाल देता। कुछ दिन तक क्रम चलता रहा। एक दिन उस वृद्ध के पौत्र ने कौतूहलवश बाड़े में झांका। उसने देखा—दादाजी दयनीय अवस्था में एक टूटी चारपाई पर पड़े कराह रहे हैं। वह बच्चा बाड़े के भीतर गया, दादा से सारी बात पूछी। वहां मिट्टी के कुछ जूठे ठीकरे पड़े हुए थे। वह उन्हें उठा लाया और अपने कमरे के बाहर रख दिया। बच्चे के पिता ने उन्हें देखा तो पूछा, 'इन्हें यहां लाकर क्यों रखा है?'

बच्चे ने जवाब दिया, 'आपके लिए। एक दिन जब आपको हम जानवरों के बाड़े में डाल देंगे तो खाना देने के लिए इन ठीकरों की जरूरत पड़ेगी। हम उसका पहले से प्रबंध कर रहे हैं।' पिता बेटे का यह उत्तर सुनकर सन्न रह गया। वह बाड़े में गया और पिता को घर में ले आया।

हर व्यक्ति को यह सोचना है कि उसके द्वारा डाली गई परम्परा का पालन अगली पीढ़ी करेगी, इसलिए ऎसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जो स्वयं को अप्रिय लगे। उपेक्षा की तो आपकी भी एक दिन उपेक्षा जरूर होगी।

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