Thursday, 18 October 2012

कर्म, फल और खेल

श्याम नामक बालक रोज स्कूल जाते वक्त जंगल से गुजरते जंगली जानवरों की आवाज से बहुत भयभीत रहता था। उसने अपने पिता से हठ किया कि आप मुझे रोज स्कूल छोड़ने आया करो। पिताजी ने कहा, तुम पूरे रास्ते गोपाल-गोपाल कहते चलते जाओ। श्री कृष्ण तुम्हारी रक्षा स्वयं करेंगे। 
नन्हें से श्याम ने रोज स्कूल जाते वक्त गोपाल का स्मरण करना शुरू किया। कुछ दिनों पश्चात कृष्ण उसके सामने प्रकट हुए और कहा, बोलो, तुम्हें क्या वरदान दूँ? नन्हे से श्याम ने कहा, 'हे गोपाल, आप रोज मुझे स्कूल तक छोड़ने आओ, यही मेरी इच्छा है।' कृष्ण तैयार हो गए। 
मैत्रीपूर्ण स्नेह भरा सफर चलता रहा। श्याम के कुछ मित्रों ने जब यह बात सुनी, तो उन्होंने कहा कि 'हम कैसे माने कि कृष्ण तुम्हें स्कूल छोड़ने आते हैं?' 
दूसरे दिन श्याम ने कृष्ण से प्रार्थना की, तो मित्रों को भी कृष्ण दर्शन हुए। 
जैसे श्याम कि भक्ति का फल उसके मित्रों को बिना मेहनत मिला, इसी प्रकार हमारे जीवन में रोजाना हमें कई ऎसी प्राप्तियां होती हैं, जिसके लिए हमने कोई पुरूषार्थ नहीं किया। माता-पिता, भाई-बहन, मित्र के किसी पुण्य से हमें ये प्राप्तियां होती हैं। 
कभी उन लोगों का उपकार नहीं भूलना चाहिए, जिनके पुरूषार्थ से हम आगे बढे। जन्म से लेकर मृत्यु तक हमने अनेकानेक लोगों से मदद ली। अत: कभी यह मिथ्या अभिमान न करें कि हमने अपने बलबूते सबकुछ हासिल किया है। सृष्टि पर ऎसा कोई नहीं, जिसने किसी के साथ-सहयोग के बिना अपना जीवन निर्वाह किया हो। इसीलिए सदैव सभी के प्रति कृतज्ञता की भावना रखें।

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